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Saturday, August 28, 2010

भगवा-आतंकवाद

आतंक फैलाने वाले आतंकवादी कहलाते हैं
ये किसी धर्म में नहीं आते हैं
फिर हम क्यों इनका नाम सामने लातें हैं
और ये कैसी प्रथा है
जिसमें आतंकवादी का नाम लिया जाता है
और नाम आतंकवाद को किसी धर्म से जोड़ जाता है
नाम तो आतंकवादी का आता है
और घर किसी मासूम का जल जाता है
किसी का मजहब लुटता है
तो किसी का सम्मान बिकता है
फिर हम इसे क्यों बढ़ावा दे रहे हैं
और आतंकवादी को “प्रज्ञा” या “अफजल” कह रहे हैं
ये नाम ही आतंक का सबसे बड़ा पहरेदार है
जिसकी आड़ में आतंकवाद फलने फूलने को तैयार है


जब आतंकवाद का नहीं कोई सम्प्रदाय
तो फिर आतंकवादी का नाम क्यों लिया जाय
कभी मासूम लोगों को मजहब की आग में
जलते देखा है
क्या कभी किसी ने इस वजह से आप पर
पथ्हर फेका है
यदि आपने अब गौर नहीं किया तो कीजिये
और आतंकवादी का नाम लेने से खुद को रोकिये
क्योंकि नाम धर्म से जुड जाता है
और कोई गरीब अकारण ही मारा जाता है
वरना बाबरी मस्जिद और मुंबई ब्लास्ट से
लोगों की नजर शायद ही हटती
और साबरमती एक्सप्रेस के बाद
गोधरा जैसी घटना न घटती!



आज फिर इस तरह की भावना को बढ़ावा मिल रहा है
और “भगवा-आतंकवाद” के जरिये ये फूल तेजी से खिल रहा है
शायद लोगों की भावनाओं से खेलने में सरकार को मजा आता है
इसीलिए कभी “हिंदू” कभी “मुस्लिम” और कभी
“भगवा-आतंकवाद” का जिक्र किया जाता है



यदि आतंक नहीं मिटा सकते, तो सच्चाई सामने लाओ
और बेवजह कारन बताकर अपनी कमी मत छिपाओ
राजनीती के पन्नों में आतंक, भ्रष्टाचार,
और वोट बैंक जैसे शब्दों का बोलबाला है
ये संविधान का सिस्टम भी बड़ा निराला है
जहाँ संसद में पहुँचने के लिए एप्टीट्यूट टेस्ट नहीं हुआ करते
वर्ना हमारे देश के गृहमंत्री इस तरह की बयानबाजी कभी न करते !

Saturday, August 21, 2010

कुछ तो शर्म करो

राष्ट्र नमन करो, कुछ श्रम करो
मेरे देश के नेताओं, कुछ तो शर्म करो
लेह बाढ़ में डूब रहा,
गरीब किसान भूख से है मर रहा
महगाई से है आम आदमी परेशान,
और जन-प्रतिनिधि ले रहे नीद आसान,
कहीं कामनवेल्थ-गेम में भ्रस्टाचारी है,
और सरकार दिखा रही लाचारी है
नक्सलियों का मामला अभी भी चल रहा है,
आतंकवाद की आग में देश अभी भी जल रहा है
लेकिन इन बातों पर रोष मत करो
मेरे जनप्रतिनिधियों कुछ तो शर्म करो !




खुद की सेलरी खुद बढ़ाते हो,
ये निर्णय आखिर तुम कैसे ले पाते हो
संसद जनता के लिए था, जनता का था
जहाँ जनता के लिए
नेहरु अटल और लाल बहादुर आवाज उठाते थे
उसी सेलरी में काम चलाते थे
पर संसद में अपना भविष्य नहीं बनाते थे
भविष्य संसद में देश का बनता है
जिसका दूसरा नाम जनता है
इन बातों पैर कुछ गौर करो
मेरे देश के नेताओं कुछ तो शर्म करो !



जिस जनता ने तुम्हें वहाँ बिठाया,
शायद अपना भाग्य गवायाँ
उनका पैसा तुम्हारी जेब में आया
फिर भी किसी ने न हाय न तौबा मचाया
क्या तुमने उनसे मांगी राय
कितनी सेलरी तुम्हारी बढ़ाई जाय
केवल तुम अब संसद में अपनी जेब भरो
अरे मेरे प्यारों कुछ तो शर्म करो



आज संविधान रो रहा है
जिन्हें बिठाया कुर्सी पर वही सो रहा है
जो जगते हैं तो केवल अपने लिए
जो जिए केवल खुद के लिए
संसद जनता की थी, आज तुम्हारी है
कहाँ गयी वो चाहत
जहाँ भलाई जनता की सारी है
आज आवाज़ खुद के लिए गूंजी
इससे ज्यादा शर्म की बात कहूँ
क्या मैं दूजी
ये तुम्हारी होशियारी है
या हमारी लाचारी है
अब सेलेरी बढ़ गयी
तो सुविधाएं कुछ तो कम करो
मेरे देश के वक्ताओं
कुछ तो शर्म करो !