Pages

Wednesday, March 24, 2010

दहेज (एक अभिशाप)

प्रथा दहेज की , पीडाओं के सेज की
कलयुग का अभिशाप है ,
या लड़के की योग्यता अथवा लड़की की सुंदरता का माप है ,
त्रेता में इसी दहेज का अपमान हुआ, बिन दहेज के सीता का सम्मान हुआ
उसी सीता को जिसे आप पूजते हैं , फिर दहेज लेने कि क्यों सोचतें हैं
शायद यह बात आपके परम्पराओं में घर कर गयी है, अथवा भावनाओं मे बस गयी है
संपन्न पिता कि खुशियों का समाधान है, उनके लिए दहेज देना आसान है
पर सहना गरीब कि बेटी को पड़ता है, जिसे कम दहेज के लिए भुगतना पड़ता है
ऐसी कन्याएं सताई जाती हैं अथवा जलाई जाती हैं
उद्देश्य कुछ और नहीं बस यही होता है पिछले कम मिले हुए दहेज को शायद पूरा करना होता है
इसी सम्बन्ध में आपको एक व्यथा सुनाता हूँ
किसी और कि नहीं अपने पड़ोस के मिश्र जी के बारे में ही बताता हूँ
पड़ोस में आयी एक गाड़ी मिश्र जी ने फौरन यह बात ताड़ी
बेटे कि नयी नयी शादी हुई शायद , इसीलिए यह कार पड़ोस में खड़ी हुई
दिमाग में जैसे ही यह बात आयी,, शादी शुदा बेटे कि पुनः शादी कि योजना बनाई
बहू से तलाक का इकरार किया ,उसने फौरन इनकार किया
मौका देख बहू जला दी गयी और मिश्र जी के घर भी एक गाड़ी खड़ी हुई
मसलन बेटे कि पुनः शादी हुई
यह बात समाज के ठेकेदारों को शायद तब समझ में आएगी जब इसी तरह
उनकी भी बेटी एक दिन जलाई जायेगी !

No comments:

Post a Comment