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Saturday, August 21, 2010

कुछ तो शर्म करो

राष्ट्र नमन करो, कुछ श्रम करो
मेरे देश के नेताओं, कुछ तो शर्म करो
लेह बाढ़ में डूब रहा,
गरीब किसान भूख से है मर रहा
महगाई से है आम आदमी परेशान,
और जन-प्रतिनिधि ले रहे नीद आसान,
कहीं कामनवेल्थ-गेम में भ्रस्टाचारी है,
और सरकार दिखा रही लाचारी है
नक्सलियों का मामला अभी भी चल रहा है,
आतंकवाद की आग में देश अभी भी जल रहा है
लेकिन इन बातों पर रोष मत करो
मेरे जनप्रतिनिधियों कुछ तो शर्म करो !




खुद की सेलरी खुद बढ़ाते हो,
ये निर्णय आखिर तुम कैसे ले पाते हो
संसद जनता के लिए था, जनता का था
जहाँ जनता के लिए
नेहरु अटल और लाल बहादुर आवाज उठाते थे
उसी सेलरी में काम चलाते थे
पर संसद में अपना भविष्य नहीं बनाते थे
भविष्य संसद में देश का बनता है
जिसका दूसरा नाम जनता है
इन बातों पैर कुछ गौर करो
मेरे देश के नेताओं कुछ तो शर्म करो !



जिस जनता ने तुम्हें वहाँ बिठाया,
शायद अपना भाग्य गवायाँ
उनका पैसा तुम्हारी जेब में आया
फिर भी किसी ने न हाय न तौबा मचाया
क्या तुमने उनसे मांगी राय
कितनी सेलरी तुम्हारी बढ़ाई जाय
केवल तुम अब संसद में अपनी जेब भरो
अरे मेरे प्यारों कुछ तो शर्म करो



आज संविधान रो रहा है
जिन्हें बिठाया कुर्सी पर वही सो रहा है
जो जगते हैं तो केवल अपने लिए
जो जिए केवल खुद के लिए
संसद जनता की थी, आज तुम्हारी है
कहाँ गयी वो चाहत
जहाँ भलाई जनता की सारी है
आज आवाज़ खुद के लिए गूंजी
इससे ज्यादा शर्म की बात कहूँ
क्या मैं दूजी
ये तुम्हारी होशियारी है
या हमारी लाचारी है
अब सेलेरी बढ़ गयी
तो सुविधाएं कुछ तो कम करो
मेरे देश के वक्ताओं
कुछ तो शर्म करो !

4 comments:

  1. जिस जनता ने तुम्हें वहाँ बिठाया,
    शायद अपना भाग्य गवायाँ
    उनका पैसा तुम्हारी जेब में आया
    फिर भी किसी ने न हाय न तौबा मचाया
    क्या तुमने उनसे मांगी राय

    बहुत सुन्दर सामायिक रचना...बधाई और शुभकामनाये ...

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  2. पापी अच्छे कर्म नहीं करते
    बेशर्म लोग श्रम नहीं करते !!

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  3. खूब खबर ली!
    आभार

    यह वर्ड वेरिफ़िकेशन हटा लिजिये।

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  4. Arey waah mitra, sach mein bahot sundar rachna hai...kaafi dino se intezaar tha tumhari taraf se kucch padhne ka...bahot acche :)

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