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Saturday, October 30, 2010

दहेज

प्रथा दहेज की ,
पीडाओं के सेज की ,
कलयुग का अभिशाप है ,
या लड़के की योग्यता अथवा लड़की की सुंदरता का माप है
त्रेता में इसी दहेज का अपमान हुआ, बिन दहेज के सीता का सम्मान हुआ
उसी सीता को जिसे आप पुजते हैं ,
फिर दहेज लेने कि क्यों सोचतें हैं

uski soch

कहीं एक मासूम नाज़ुक सी लड़की
बहुत खूबसूरत मगर सांवली सी
मुझे अपनी ख्वाबों की बाहों में पाकर
कभी नींद में मुस्कुराती तो होगी
उसी नींद में कसमसा कसमसा कर
सिरहाने से तकिया गिरती तो होगी
चलो खत लिखें दिल में आता तो होगा
कलम हाँथ से छूट जाती तो होगी
उमंगे कलम फिर उठती तो होंगी
मेरा नाम अपनी किताबों में लिखकर
वो दाँतों तले ऊँगली दबाती तो होगी
इंतज़ार तो मेरा उनको भी होगा
ऐतबार मेरा तो उनको भी होगा
मेरे बारें में सोचकर
वो भी मुस्कुराती तो होगी
मेरी जिंदगी का खुमार हैं वो
सुंदरता का भरमार हैं वो
उनकी हर सांस में
मेरी खुशबू आती तो होगी!

मेरी कल्पना

तपती गर्मी में रिमझिम बारिश की फुहार हो
चंद्रमा की शीतलता और उसकी चांदनी का इजहार हो
फूलों की महकती बगिया और उसका गुलहार हो
मेरे लिए मेरी कल्पनाओं का संसार हो !

आजकल न जाने कहाँ खो जाता हूँ
तुम सपनो में आओ इसलिए जल्दी सो जाता हूँ
तुम मेरे सपनो की रानी और मेरा प्यार हो
मेरी भावनाओं का सार हो !

तुमसे बिछड़ने की कल्पना से ही बेचैन हो जाता हूँ
कोई समझ न ले मेरी बेबसी को इसलिए मुस्कुराता हूँ
तुम मेरी मुस्कराहट का आकार हो
मेरी संवेदनाओं का आधार हो !

जब से तुम्हें देखा चाँद की कमी न महसूस हुई
रात आयी और सितारों ने भी तुम्हारी खवाइश की
तुम सितारों की चमक का आधार हो
मेरी डूबी हुई नैया की मझधार हो !

जब से तुमेह देखा शारीर ने एक करवट सी ली
मेरे हृदय ने हर सांस से पहले तुम्हारे याद की उम्मीद की
तुम मेरी साँसों का परिष्कृत प्रकार हो
प्रकृति की रचनाओं का चमत्कार हो !

तुम्हारी दृष्टी से जब भी दुनिया को देखता हूँ
हर बार खूबसूरत नज़र आती है
जाने कैसे, मैं ये सोचता हूँ
तुम दृष्टियों में भी प्रथम हर बार हो !

किसी को देखता हूँ तो तुम नजर आती हो
अदा कोई भी हो बस तुम्हारी ही भाती है
तुम आदाओं का भण्डार हो
जीवन के हर पहलू में तुम हमें स्वीकार हो !