वक्त मिलता तो हम भी खुद से कुछ बातें कर लेते
खुद को खुद से अलग कर देते
गर वक्त मिलता
वो राहें ही नहीं मिली
जिन पर हम चलना चाहते थे
वो मजिल ही नहीं दिखी
जिन्हे हम पाना चाहते थे !
ऐसा नहीं कि खूबियों का
निशां हममे न था
ऐसा नहीं कि में क्या हूँ
मुझे नहीं पता था
पर न राहें मिली
और न ही दिखी मंजिल
और हमने प्रयास करना
बंद कर दिया क्योंकि
मेरा प्रयास अब हो
गया था धूमिल !
जीवन कि आपा धापी में
मैं कहीं खो गया था
न जाने क्यों खुद से
दूर हो गया था
आज जब खुद को पहचाना
मैं क्या हूँ क्या था मेरा लछ्य
जिससे था में अब तक अनजाना
लेकिन अब देर हो चुकी थी
रास्तों पर न जाने कितनी
धुल जम चुकी थी
जिसके उपर चलना मुश्किल था
और मैं
घोडो कि रेस में शामिल था !
Monday, November 1, 2010
Saturday, October 30, 2010
दहेज
प्रथा दहेज की ,
पीडाओं के सेज की ,
कलयुग का अभिशाप है ,
या लड़के की योग्यता अथवा लड़की की सुंदरता का माप है
त्रेता में इसी दहेज का अपमान हुआ, बिन दहेज के सीता का सम्मान हुआ
उसी सीता को जिसे आप पुजते हैं ,
फिर दहेज लेने कि क्यों सोचतें हैं
पीडाओं के सेज की ,
कलयुग का अभिशाप है ,
या लड़के की योग्यता अथवा लड़की की सुंदरता का माप है
त्रेता में इसी दहेज का अपमान हुआ, बिन दहेज के सीता का सम्मान हुआ
उसी सीता को जिसे आप पुजते हैं ,
फिर दहेज लेने कि क्यों सोचतें हैं
uski soch
कहीं एक मासूम नाज़ुक सी लड़की
बहुत खूबसूरत मगर सांवली सी
मुझे अपनी ख्वाबों की बाहों में पाकर
कभी नींद में मुस्कुराती तो होगी
उसी नींद में कसमसा कसमसा कर
सिरहाने से तकिया गिरती तो होगी
चलो खत लिखें दिल में आता तो होगा
कलम हाँथ से छूट जाती तो होगी
उमंगे कलम फिर उठती तो होंगी
मेरा नाम अपनी किताबों में लिखकर
वो दाँतों तले ऊँगली दबाती तो होगी
इंतज़ार तो मेरा उनको भी होगा
ऐतबार मेरा तो उनको भी होगा
मेरे बारें में सोचकर
वो भी मुस्कुराती तो होगी
मेरी जिंदगी का खुमार हैं वो
सुंदरता का भरमार हैं वो
उनकी हर सांस में
मेरी खुशबू आती तो होगी!
बहुत खूबसूरत मगर सांवली सी
मुझे अपनी ख्वाबों की बाहों में पाकर
कभी नींद में मुस्कुराती तो होगी
उसी नींद में कसमसा कसमसा कर
सिरहाने से तकिया गिरती तो होगी
चलो खत लिखें दिल में आता तो होगा
कलम हाँथ से छूट जाती तो होगी
उमंगे कलम फिर उठती तो होंगी
मेरा नाम अपनी किताबों में लिखकर
वो दाँतों तले ऊँगली दबाती तो होगी
इंतज़ार तो मेरा उनको भी होगा
ऐतबार मेरा तो उनको भी होगा
मेरे बारें में सोचकर
वो भी मुस्कुराती तो होगी
मेरी जिंदगी का खुमार हैं वो
सुंदरता का भरमार हैं वो
उनकी हर सांस में
मेरी खुशबू आती तो होगी!
मेरी कल्पना
तपती गर्मी में रिमझिम बारिश की फुहार हो
चंद्रमा की शीतलता और उसकी चांदनी का इजहार हो
फूलों की महकती बगिया और उसका गुलहार हो
मेरे लिए मेरी कल्पनाओं का संसार हो !
आजकल न जाने कहाँ खो जाता हूँ
तुम सपनो में आओ इसलिए जल्दी सो जाता हूँ
तुम मेरे सपनो की रानी और मेरा प्यार हो
मेरी भावनाओं का सार हो !
तुमसे बिछड़ने की कल्पना से ही बेचैन हो जाता हूँ
कोई समझ न ले मेरी बेबसी को इसलिए मुस्कुराता हूँ
तुम मेरी मुस्कराहट का आकार हो
मेरी संवेदनाओं का आधार हो !
जब से तुम्हें देखा चाँद की कमी न महसूस हुई
रात आयी और सितारों ने भी तुम्हारी खवाइश की
तुम सितारों की चमक का आधार हो
मेरी डूबी हुई नैया की मझधार हो !
जब से तुमेह देखा शारीर ने एक करवट सी ली
मेरे हृदय ने हर सांस से पहले तुम्हारे याद की उम्मीद की
तुम मेरी साँसों का परिष्कृत प्रकार हो
प्रकृति की रचनाओं का चमत्कार हो !
तुम्हारी दृष्टी से जब भी दुनिया को देखता हूँ
हर बार खूबसूरत नज़र आती है
जाने कैसे, मैं ये सोचता हूँ
तुम दृष्टियों में भी प्रथम हर बार हो !
किसी को देखता हूँ तो तुम नजर आती हो
अदा कोई भी हो बस तुम्हारी ही भाती है
तुम आदाओं का भण्डार हो
जीवन के हर पहलू में तुम हमें स्वीकार हो !
चंद्रमा की शीतलता और उसकी चांदनी का इजहार हो
फूलों की महकती बगिया और उसका गुलहार हो
मेरे लिए मेरी कल्पनाओं का संसार हो !
आजकल न जाने कहाँ खो जाता हूँ
तुम सपनो में आओ इसलिए जल्दी सो जाता हूँ
तुम मेरे सपनो की रानी और मेरा प्यार हो
मेरी भावनाओं का सार हो !
तुमसे बिछड़ने की कल्पना से ही बेचैन हो जाता हूँ
कोई समझ न ले मेरी बेबसी को इसलिए मुस्कुराता हूँ
तुम मेरी मुस्कराहट का आकार हो
मेरी संवेदनाओं का आधार हो !
जब से तुम्हें देखा चाँद की कमी न महसूस हुई
रात आयी और सितारों ने भी तुम्हारी खवाइश की
तुम सितारों की चमक का आधार हो
मेरी डूबी हुई नैया की मझधार हो !
जब से तुमेह देखा शारीर ने एक करवट सी ली
मेरे हृदय ने हर सांस से पहले तुम्हारे याद की उम्मीद की
तुम मेरी साँसों का परिष्कृत प्रकार हो
प्रकृति की रचनाओं का चमत्कार हो !
तुम्हारी दृष्टी से जब भी दुनिया को देखता हूँ
हर बार खूबसूरत नज़र आती है
जाने कैसे, मैं ये सोचता हूँ
तुम दृष्टियों में भी प्रथम हर बार हो !
किसी को देखता हूँ तो तुम नजर आती हो
अदा कोई भी हो बस तुम्हारी ही भाती है
तुम आदाओं का भण्डार हो
जीवन के हर पहलू में तुम हमें स्वीकार हो !
Saturday, August 28, 2010
भगवा-आतंकवाद
आतंक फैलाने वाले आतंकवादी कहलाते हैं
ये किसी धर्म में नहीं आते हैं
फिर हम क्यों इनका नाम सामने लातें हैं
और ये कैसी प्रथा है
जिसमें आतंकवादी का नाम लिया जाता है
और नाम आतंकवाद को किसी धर्म से जोड़ जाता है
नाम तो आतंकवादी का आता है
और घर किसी मासूम का जल जाता है
किसी का मजहब लुटता है
तो किसी का सम्मान बिकता है
फिर हम इसे क्यों बढ़ावा दे रहे हैं
और आतंकवादी को “प्रज्ञा” या “अफजल” कह रहे हैं
ये नाम ही आतंक का सबसे बड़ा पहरेदार है
जिसकी आड़ में आतंकवाद फलने फूलने को तैयार है
जब आतंकवाद का नहीं कोई सम्प्रदाय
तो फिर आतंकवादी का नाम क्यों लिया जाय
कभी मासूम लोगों को मजहब की आग में
जलते देखा है
क्या कभी किसी ने इस वजह से आप पर
पथ्हर फेका है
यदि आपने अब गौर नहीं किया तो कीजिये
और आतंकवादी का नाम लेने से खुद को रोकिये
क्योंकि नाम धर्म से जुड जाता है
और कोई गरीब अकारण ही मारा जाता है
वरना बाबरी मस्जिद और मुंबई ब्लास्ट से
लोगों की नजर शायद ही हटती
और साबरमती एक्सप्रेस के बाद
गोधरा जैसी घटना न घटती!
आज फिर इस तरह की भावना को बढ़ावा मिल रहा है
और “भगवा-आतंकवाद” के जरिये ये फूल तेजी से खिल रहा है
शायद लोगों की भावनाओं से खेलने में सरकार को मजा आता है
इसीलिए कभी “हिंदू” कभी “मुस्लिम” और कभी
“भगवा-आतंकवाद” का जिक्र किया जाता है
यदि आतंक नहीं मिटा सकते, तो सच्चाई सामने लाओ
और बेवजह कारन बताकर अपनी कमी मत छिपाओ
राजनीती के पन्नों में आतंक, भ्रष्टाचार,
और वोट बैंक जैसे शब्दों का बोलबाला है
ये संविधान का सिस्टम भी बड़ा निराला है
जहाँ संसद में पहुँचने के लिए एप्टीट्यूट टेस्ट नहीं हुआ करते
वर्ना हमारे देश के गृहमंत्री इस तरह की बयानबाजी कभी न करते !
ये किसी धर्म में नहीं आते हैं
फिर हम क्यों इनका नाम सामने लातें हैं
और ये कैसी प्रथा है
जिसमें आतंकवादी का नाम लिया जाता है
और नाम आतंकवाद को किसी धर्म से जोड़ जाता है
नाम तो आतंकवादी का आता है
और घर किसी मासूम का जल जाता है
किसी का मजहब लुटता है
तो किसी का सम्मान बिकता है
फिर हम इसे क्यों बढ़ावा दे रहे हैं
और आतंकवादी को “प्रज्ञा” या “अफजल” कह रहे हैं
ये नाम ही आतंक का सबसे बड़ा पहरेदार है
जिसकी आड़ में आतंकवाद फलने फूलने को तैयार है
जब आतंकवाद का नहीं कोई सम्प्रदाय
तो फिर आतंकवादी का नाम क्यों लिया जाय
कभी मासूम लोगों को मजहब की आग में
जलते देखा है
क्या कभी किसी ने इस वजह से आप पर
पथ्हर फेका है
यदि आपने अब गौर नहीं किया तो कीजिये
और आतंकवादी का नाम लेने से खुद को रोकिये
क्योंकि नाम धर्म से जुड जाता है
और कोई गरीब अकारण ही मारा जाता है
वरना बाबरी मस्जिद और मुंबई ब्लास्ट से
लोगों की नजर शायद ही हटती
और साबरमती एक्सप्रेस के बाद
गोधरा जैसी घटना न घटती!
आज फिर इस तरह की भावना को बढ़ावा मिल रहा है
और “भगवा-आतंकवाद” के जरिये ये फूल तेजी से खिल रहा है
शायद लोगों की भावनाओं से खेलने में सरकार को मजा आता है
इसीलिए कभी “हिंदू” कभी “मुस्लिम” और कभी
“भगवा-आतंकवाद” का जिक्र किया जाता है
यदि आतंक नहीं मिटा सकते, तो सच्चाई सामने लाओ
और बेवजह कारन बताकर अपनी कमी मत छिपाओ
राजनीती के पन्नों में आतंक, भ्रष्टाचार,
और वोट बैंक जैसे शब्दों का बोलबाला है
ये संविधान का सिस्टम भी बड़ा निराला है
जहाँ संसद में पहुँचने के लिए एप्टीट्यूट टेस्ट नहीं हुआ करते
वर्ना हमारे देश के गृहमंत्री इस तरह की बयानबाजी कभी न करते !
Saturday, August 21, 2010
कुछ तो शर्म करो
राष्ट्र नमन करो, कुछ श्रम करो
मेरे देश के नेताओं, कुछ तो शर्म करो
लेह बाढ़ में डूब रहा,
गरीब किसान भूख से है मर रहा
महगाई से है आम आदमी परेशान,
और जन-प्रतिनिधि ले रहे नीद आसान,
कहीं कामनवेल्थ-गेम में भ्रस्टाचारी है,
और सरकार दिखा रही लाचारी है
नक्सलियों का मामला अभी भी चल रहा है,
आतंकवाद की आग में देश अभी भी जल रहा है
लेकिन इन बातों पर रोष मत करो
मेरे जनप्रतिनिधियों कुछ तो शर्म करो !
खुद की सेलरी खुद बढ़ाते हो,
ये निर्णय आखिर तुम कैसे ले पाते हो
संसद जनता के लिए था, जनता का था
जहाँ जनता के लिए
नेहरु अटल और लाल बहादुर आवाज उठाते थे
उसी सेलरी में काम चलाते थे
पर संसद में अपना भविष्य नहीं बनाते थे
भविष्य संसद में देश का बनता है
जिसका दूसरा नाम जनता है
इन बातों पैर कुछ गौर करो
मेरे देश के नेताओं कुछ तो शर्म करो !
जिस जनता ने तुम्हें वहाँ बिठाया,
शायद अपना भाग्य गवायाँ
उनका पैसा तुम्हारी जेब में आया
फिर भी किसी ने न हाय न तौबा मचाया
क्या तुमने उनसे मांगी राय
कितनी सेलरी तुम्हारी बढ़ाई जाय
केवल तुम अब संसद में अपनी जेब भरो
अरे मेरे प्यारों कुछ तो शर्म करो
आज संविधान रो रहा है
जिन्हें बिठाया कुर्सी पर वही सो रहा है
जो जगते हैं तो केवल अपने लिए
जो जिए केवल खुद के लिए
संसद जनता की थी, आज तुम्हारी है
कहाँ गयी वो चाहत
जहाँ भलाई जनता की सारी है
आज आवाज़ खुद के लिए गूंजी
इससे ज्यादा शर्म की बात कहूँ
क्या मैं दूजी
ये तुम्हारी होशियारी है
या हमारी लाचारी है
अब सेलेरी बढ़ गयी
तो सुविधाएं कुछ तो कम करो
मेरे देश के वक्ताओं
कुछ तो शर्म करो !
मेरे देश के नेताओं, कुछ तो शर्म करो
लेह बाढ़ में डूब रहा,
गरीब किसान भूख से है मर रहा
महगाई से है आम आदमी परेशान,
और जन-प्रतिनिधि ले रहे नीद आसान,
कहीं कामनवेल्थ-गेम में भ्रस्टाचारी है,
और सरकार दिखा रही लाचारी है
नक्सलियों का मामला अभी भी चल रहा है,
आतंकवाद की आग में देश अभी भी जल रहा है
लेकिन इन बातों पर रोष मत करो
मेरे जनप्रतिनिधियों कुछ तो शर्म करो !
खुद की सेलरी खुद बढ़ाते हो,
ये निर्णय आखिर तुम कैसे ले पाते हो
संसद जनता के लिए था, जनता का था
जहाँ जनता के लिए
नेहरु अटल और लाल बहादुर आवाज उठाते थे
उसी सेलरी में काम चलाते थे
पर संसद में अपना भविष्य नहीं बनाते थे
भविष्य संसद में देश का बनता है
जिसका दूसरा नाम जनता है
इन बातों पैर कुछ गौर करो
मेरे देश के नेताओं कुछ तो शर्म करो !
जिस जनता ने तुम्हें वहाँ बिठाया,
शायद अपना भाग्य गवायाँ
उनका पैसा तुम्हारी जेब में आया
फिर भी किसी ने न हाय न तौबा मचाया
क्या तुमने उनसे मांगी राय
कितनी सेलरी तुम्हारी बढ़ाई जाय
केवल तुम अब संसद में अपनी जेब भरो
अरे मेरे प्यारों कुछ तो शर्म करो
आज संविधान रो रहा है
जिन्हें बिठाया कुर्सी पर वही सो रहा है
जो जगते हैं तो केवल अपने लिए
जो जिए केवल खुद के लिए
संसद जनता की थी, आज तुम्हारी है
कहाँ गयी वो चाहत
जहाँ भलाई जनता की सारी है
आज आवाज़ खुद के लिए गूंजी
इससे ज्यादा शर्म की बात कहूँ
क्या मैं दूजी
ये तुम्हारी होशियारी है
या हमारी लाचारी है
अब सेलेरी बढ़ गयी
तो सुविधाएं कुछ तो कम करो
मेरे देश के वक्ताओं
कुछ तो शर्म करो !
Wednesday, March 24, 2010
दहेज (एक अभिशाप)
प्रथा दहेज की , पीडाओं के सेज की
कलयुग का अभिशाप है ,
या लड़के की योग्यता अथवा लड़की की सुंदरता का माप है ,
त्रेता में इसी दहेज का अपमान हुआ, बिन दहेज के सीता का सम्मान हुआ
उसी सीता को जिसे आप पूजते हैं , फिर दहेज लेने कि क्यों सोचतें हैं
शायद यह बात आपके परम्पराओं में घर कर गयी है, अथवा भावनाओं मे बस गयी है
संपन्न पिता कि खुशियों का समाधान है, उनके लिए दहेज देना आसान है
पर सहना गरीब कि बेटी को पड़ता है, जिसे कम दहेज के लिए भुगतना पड़ता है
ऐसी कन्याएं सताई जाती हैं अथवा जलाई जाती हैं
उद्देश्य कुछ और नहीं बस यही होता है पिछले कम मिले हुए दहेज को शायद पूरा करना होता है
इसी सम्बन्ध में आपको एक व्यथा सुनाता हूँ
किसी और कि नहीं अपने पड़ोस के मिश्र जी के बारे में ही बताता हूँ
पड़ोस में आयी एक गाड़ी मिश्र जी ने फौरन यह बात ताड़ी
बेटे कि नयी नयी शादी हुई शायद , इसीलिए यह कार पड़ोस में खड़ी हुई
दिमाग में जैसे ही यह बात आयी,, शादी शुदा बेटे कि पुनः शादी कि योजना बनाई
बहू से तलाक का इकरार किया ,उसने फौरन इनकार किया
मौका देख बहू जला दी गयी और मिश्र जी के घर भी एक गाड़ी खड़ी हुई
मसलन बेटे कि पुनः शादी हुई
यह बात समाज के ठेकेदारों को शायद तब समझ में आएगी जब इसी तरह
उनकी भी बेटी एक दिन जलाई जायेगी !
कलयुग का अभिशाप है ,
या लड़के की योग्यता अथवा लड़की की सुंदरता का माप है ,
त्रेता में इसी दहेज का अपमान हुआ, बिन दहेज के सीता का सम्मान हुआ
उसी सीता को जिसे आप पूजते हैं , फिर दहेज लेने कि क्यों सोचतें हैं
शायद यह बात आपके परम्पराओं में घर कर गयी है, अथवा भावनाओं मे बस गयी है
संपन्न पिता कि खुशियों का समाधान है, उनके लिए दहेज देना आसान है
पर सहना गरीब कि बेटी को पड़ता है, जिसे कम दहेज के लिए भुगतना पड़ता है
ऐसी कन्याएं सताई जाती हैं अथवा जलाई जाती हैं
उद्देश्य कुछ और नहीं बस यही होता है पिछले कम मिले हुए दहेज को शायद पूरा करना होता है
इसी सम्बन्ध में आपको एक व्यथा सुनाता हूँ
किसी और कि नहीं अपने पड़ोस के मिश्र जी के बारे में ही बताता हूँ
पड़ोस में आयी एक गाड़ी मिश्र जी ने फौरन यह बात ताड़ी
बेटे कि नयी नयी शादी हुई शायद , इसीलिए यह कार पड़ोस में खड़ी हुई
दिमाग में जैसे ही यह बात आयी,, शादी शुदा बेटे कि पुनः शादी कि योजना बनाई
बहू से तलाक का इकरार किया ,उसने फौरन इनकार किया
मौका देख बहू जला दी गयी और मिश्र जी के घर भी एक गाड़ी खड़ी हुई
मसलन बेटे कि पुनः शादी हुई
यह बात समाज के ठेकेदारों को शायद तब समझ में आएगी जब इसी तरह
उनकी भी बेटी एक दिन जलाई जायेगी !
Subscribe to:
Posts (Atom)