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Monday, November 1, 2010

मेरी मंजिल

वक्त मिलता तो हम भी खुद से कुछ बातें कर लेते
खुद को खुद से अलग कर देते
गर वक्त मिलता
वो राहें ही नहीं मिली
जिन पर हम चलना चाहते थे
वो मजिल ही नहीं दिखी
जिन्हे हम पाना चाहते थे !

ऐसा नहीं कि खूबियों का
निशां हममे न था
ऐसा नहीं कि में क्या हूँ
मुझे नहीं पता था
पर न राहें मिली
और न ही दिखी मंजिल
और हमने प्रयास करना
बंद कर दिया क्योंकि
मेरा प्रयास अब हो
गया था धूमिल !

जीवन कि आपा धापी में
मैं कहीं खो गया था
न जाने क्यों खुद से
दूर हो गया था
आज जब खुद को पहचाना
मैं क्या हूँ क्या था मेरा लछ्य
जिससे था में अब तक अनजाना
लेकिन अब देर हो चुकी थी
रास्तों पर न जाने कितनी
धुल जम चुकी थी
जिसके उपर चलना मुश्किल था
और मैं
घोडो कि रेस में शामिल था !

Saturday, October 30, 2010

दहेज

प्रथा दहेज की ,
पीडाओं के सेज की ,
कलयुग का अभिशाप है ,
या लड़के की योग्यता अथवा लड़की की सुंदरता का माप है
त्रेता में इसी दहेज का अपमान हुआ, बिन दहेज के सीता का सम्मान हुआ
उसी सीता को जिसे आप पुजते हैं ,
फिर दहेज लेने कि क्यों सोचतें हैं

uski soch

कहीं एक मासूम नाज़ुक सी लड़की
बहुत खूबसूरत मगर सांवली सी
मुझे अपनी ख्वाबों की बाहों में पाकर
कभी नींद में मुस्कुराती तो होगी
उसी नींद में कसमसा कसमसा कर
सिरहाने से तकिया गिरती तो होगी
चलो खत लिखें दिल में आता तो होगा
कलम हाँथ से छूट जाती तो होगी
उमंगे कलम फिर उठती तो होंगी
मेरा नाम अपनी किताबों में लिखकर
वो दाँतों तले ऊँगली दबाती तो होगी
इंतज़ार तो मेरा उनको भी होगा
ऐतबार मेरा तो उनको भी होगा
मेरे बारें में सोचकर
वो भी मुस्कुराती तो होगी
मेरी जिंदगी का खुमार हैं वो
सुंदरता का भरमार हैं वो
उनकी हर सांस में
मेरी खुशबू आती तो होगी!

मेरी कल्पना

तपती गर्मी में रिमझिम बारिश की फुहार हो
चंद्रमा की शीतलता और उसकी चांदनी का इजहार हो
फूलों की महकती बगिया और उसका गुलहार हो
मेरे लिए मेरी कल्पनाओं का संसार हो !

आजकल न जाने कहाँ खो जाता हूँ
तुम सपनो में आओ इसलिए जल्दी सो जाता हूँ
तुम मेरे सपनो की रानी और मेरा प्यार हो
मेरी भावनाओं का सार हो !

तुमसे बिछड़ने की कल्पना से ही बेचैन हो जाता हूँ
कोई समझ न ले मेरी बेबसी को इसलिए मुस्कुराता हूँ
तुम मेरी मुस्कराहट का आकार हो
मेरी संवेदनाओं का आधार हो !

जब से तुम्हें देखा चाँद की कमी न महसूस हुई
रात आयी और सितारों ने भी तुम्हारी खवाइश की
तुम सितारों की चमक का आधार हो
मेरी डूबी हुई नैया की मझधार हो !

जब से तुमेह देखा शारीर ने एक करवट सी ली
मेरे हृदय ने हर सांस से पहले तुम्हारे याद की उम्मीद की
तुम मेरी साँसों का परिष्कृत प्रकार हो
प्रकृति की रचनाओं का चमत्कार हो !

तुम्हारी दृष्टी से जब भी दुनिया को देखता हूँ
हर बार खूबसूरत नज़र आती है
जाने कैसे, मैं ये सोचता हूँ
तुम दृष्टियों में भी प्रथम हर बार हो !

किसी को देखता हूँ तो तुम नजर आती हो
अदा कोई भी हो बस तुम्हारी ही भाती है
तुम आदाओं का भण्डार हो
जीवन के हर पहलू में तुम हमें स्वीकार हो !

Saturday, August 28, 2010

भगवा-आतंकवाद

आतंक फैलाने वाले आतंकवादी कहलाते हैं
ये किसी धर्म में नहीं आते हैं
फिर हम क्यों इनका नाम सामने लातें हैं
और ये कैसी प्रथा है
जिसमें आतंकवादी का नाम लिया जाता है
और नाम आतंकवाद को किसी धर्म से जोड़ जाता है
नाम तो आतंकवादी का आता है
और घर किसी मासूम का जल जाता है
किसी का मजहब लुटता है
तो किसी का सम्मान बिकता है
फिर हम इसे क्यों बढ़ावा दे रहे हैं
और आतंकवादी को “प्रज्ञा” या “अफजल” कह रहे हैं
ये नाम ही आतंक का सबसे बड़ा पहरेदार है
जिसकी आड़ में आतंकवाद फलने फूलने को तैयार है


जब आतंकवाद का नहीं कोई सम्प्रदाय
तो फिर आतंकवादी का नाम क्यों लिया जाय
कभी मासूम लोगों को मजहब की आग में
जलते देखा है
क्या कभी किसी ने इस वजह से आप पर
पथ्हर फेका है
यदि आपने अब गौर नहीं किया तो कीजिये
और आतंकवादी का नाम लेने से खुद को रोकिये
क्योंकि नाम धर्म से जुड जाता है
और कोई गरीब अकारण ही मारा जाता है
वरना बाबरी मस्जिद और मुंबई ब्लास्ट से
लोगों की नजर शायद ही हटती
और साबरमती एक्सप्रेस के बाद
गोधरा जैसी घटना न घटती!



आज फिर इस तरह की भावना को बढ़ावा मिल रहा है
और “भगवा-आतंकवाद” के जरिये ये फूल तेजी से खिल रहा है
शायद लोगों की भावनाओं से खेलने में सरकार को मजा आता है
इसीलिए कभी “हिंदू” कभी “मुस्लिम” और कभी
“भगवा-आतंकवाद” का जिक्र किया जाता है



यदि आतंक नहीं मिटा सकते, तो सच्चाई सामने लाओ
और बेवजह कारन बताकर अपनी कमी मत छिपाओ
राजनीती के पन्नों में आतंक, भ्रष्टाचार,
और वोट बैंक जैसे शब्दों का बोलबाला है
ये संविधान का सिस्टम भी बड़ा निराला है
जहाँ संसद में पहुँचने के लिए एप्टीट्यूट टेस्ट नहीं हुआ करते
वर्ना हमारे देश के गृहमंत्री इस तरह की बयानबाजी कभी न करते !

Saturday, August 21, 2010

कुछ तो शर्म करो

राष्ट्र नमन करो, कुछ श्रम करो
मेरे देश के नेताओं, कुछ तो शर्म करो
लेह बाढ़ में डूब रहा,
गरीब किसान भूख से है मर रहा
महगाई से है आम आदमी परेशान,
और जन-प्रतिनिधि ले रहे नीद आसान,
कहीं कामनवेल्थ-गेम में भ्रस्टाचारी है,
और सरकार दिखा रही लाचारी है
नक्सलियों का मामला अभी भी चल रहा है,
आतंकवाद की आग में देश अभी भी जल रहा है
लेकिन इन बातों पर रोष मत करो
मेरे जनप्रतिनिधियों कुछ तो शर्म करो !




खुद की सेलरी खुद बढ़ाते हो,
ये निर्णय आखिर तुम कैसे ले पाते हो
संसद जनता के लिए था, जनता का था
जहाँ जनता के लिए
नेहरु अटल और लाल बहादुर आवाज उठाते थे
उसी सेलरी में काम चलाते थे
पर संसद में अपना भविष्य नहीं बनाते थे
भविष्य संसद में देश का बनता है
जिसका दूसरा नाम जनता है
इन बातों पैर कुछ गौर करो
मेरे देश के नेताओं कुछ तो शर्म करो !



जिस जनता ने तुम्हें वहाँ बिठाया,
शायद अपना भाग्य गवायाँ
उनका पैसा तुम्हारी जेब में आया
फिर भी किसी ने न हाय न तौबा मचाया
क्या तुमने उनसे मांगी राय
कितनी सेलरी तुम्हारी बढ़ाई जाय
केवल तुम अब संसद में अपनी जेब भरो
अरे मेरे प्यारों कुछ तो शर्म करो



आज संविधान रो रहा है
जिन्हें बिठाया कुर्सी पर वही सो रहा है
जो जगते हैं तो केवल अपने लिए
जो जिए केवल खुद के लिए
संसद जनता की थी, आज तुम्हारी है
कहाँ गयी वो चाहत
जहाँ भलाई जनता की सारी है
आज आवाज़ खुद के लिए गूंजी
इससे ज्यादा शर्म की बात कहूँ
क्या मैं दूजी
ये तुम्हारी होशियारी है
या हमारी लाचारी है
अब सेलेरी बढ़ गयी
तो सुविधाएं कुछ तो कम करो
मेरे देश के वक्ताओं
कुछ तो शर्म करो !

Wednesday, March 24, 2010

दहेज (एक अभिशाप)

प्रथा दहेज की , पीडाओं के सेज की
कलयुग का अभिशाप है ,
या लड़के की योग्यता अथवा लड़की की सुंदरता का माप है ,
त्रेता में इसी दहेज का अपमान हुआ, बिन दहेज के सीता का सम्मान हुआ
उसी सीता को जिसे आप पूजते हैं , फिर दहेज लेने कि क्यों सोचतें हैं
शायद यह बात आपके परम्पराओं में घर कर गयी है, अथवा भावनाओं मे बस गयी है
संपन्न पिता कि खुशियों का समाधान है, उनके लिए दहेज देना आसान है
पर सहना गरीब कि बेटी को पड़ता है, जिसे कम दहेज के लिए भुगतना पड़ता है
ऐसी कन्याएं सताई जाती हैं अथवा जलाई जाती हैं
उद्देश्य कुछ और नहीं बस यही होता है पिछले कम मिले हुए दहेज को शायद पूरा करना होता है
इसी सम्बन्ध में आपको एक व्यथा सुनाता हूँ
किसी और कि नहीं अपने पड़ोस के मिश्र जी के बारे में ही बताता हूँ
पड़ोस में आयी एक गाड़ी मिश्र जी ने फौरन यह बात ताड़ी
बेटे कि नयी नयी शादी हुई शायद , इसीलिए यह कार पड़ोस में खड़ी हुई
दिमाग में जैसे ही यह बात आयी,, शादी शुदा बेटे कि पुनः शादी कि योजना बनाई
बहू से तलाक का इकरार किया ,उसने फौरन इनकार किया
मौका देख बहू जला दी गयी और मिश्र जी के घर भी एक गाड़ी खड़ी हुई
मसलन बेटे कि पुनः शादी हुई
यह बात समाज के ठेकेदारों को शायद तब समझ में आएगी जब इसी तरह
उनकी भी बेटी एक दिन जलाई जायेगी !

Monday, March 22, 2010

नर हो न निराश करो मन को

नर हो न निराश करो मन को
कुछ काम करो कुछ काम करो
जग में रहके निज नाम करो
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो
कुछ तो उपयुक्त करो तन को
नर हो न निराश करो मन को ।
संभलो कि सुयोग न जाए चला
कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला
समझो जग को न निरा सपना
पथ आप प्रशस्त करो अपना
अखिलेश्वर है अवलम्बन को
नर हो न निराश करो मन को ।
जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहाँ
फिर जा सकता वह सत्त्व कहाँ
तुम स्वत्त्व सुधा रस पान करो
उठके अमरत्व विधान करो
दवरूप रहो भव कानन को
नर हो न निराश करो मन को ।
निज गौरव का नित ज्ञान रहे
हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे
सब जाय अभी पर मान रहे
मरणोत्तर गुंजित गान रहे
कुछ हो न तजो निज साधन को
नर हो न निराश करो मन को ।

Saturday, March 20, 2010

जो बीत गई

जो बीत गई सो बात गई !

जीवन में एक सितारा था,
माना, वह बेहद प्यारा था,
वह डूब गया तो डूब गया;
अंबर के आनन को देखो,
कितने इसके तारे टूटे,
कितने इसके प्यारे छूटे,
जो छूट गए फिर कहाँ मिले;
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अंबर शोक मनाता है !
जो बीत गई सो बात गई !

जीवन में वह था एक कुसुम,
थे उस पर नित्य निछावर तुम,
वह सूख गया तो सूख गया;
मधुवन की छाती को देखो,
सूखीं कितनी इसकी कलियाँ,
मुरझाईं कितनी वल्लरियाँ
जो मुरझाईं फिर कहाँ खिलीं;
पर बोलो सूखे फूलों पर
कब मधुवन शोर मचाता है;
जो बीत गई सो बात गई !

जीवन में मधु का प्याला था,
तुमने तन-मन दे डाला था,
वह टूट गया तो टूट गया;
मदिरालय का आँगन देखो,
कितने प्याले हिल जाते हैं,
गिर मिट्टी में मिल जाते हैं,
जो गिरते हैं कब उठते हैं;
पर बोलो टूटे प्यालों पर
कब मदिरालय पछताता है !
जो बीत गई सो बात गई !

मृदु मिट्टी के हैं बने हुए,
मधुघट फूटा ही करते हैं,
लघु जीवन लेकर आए हैं,
प्याले टूटा ही करते हैं,
फिर भी मदिरालय के अंदर
मधु के घट हैं, मधुप्याले हैं,
जो मादकता के मारे हैं,
वे मधु लूटा ही करते हैं;
वह कच्चा पीने वाला है
जिसकी ममता घट-प्यालों पर,
जो सच्चे मधु से जला हुआ
कब रोता है, चिल्लाता है !
जो बीत गई सो बात गई !

हिम्मत करने वालों की कभी हार नही होती..

लेहरों से डरकर नौका पार नहीं होती..
हिम्मत करने वालों की कभी हार नही होती..
नन्ही चींटीं जब दाना लेकर चढती है..
चढती दीवारों पर सो बार फ़िसलती है..
मनका विश्वास रगॊं मे साहस भरता है..
चढकर गिरना, गिरकर चढना ना अखरता है..
मेहनत उसकी बेकार हर बार नहीं होती..
हिम्मत करने वालों की कभी हार नही होती..
डुबकियां सिंधुमें गोताखोर लगाता है..
जा जा कर खाली हांथ लौटकर आता है..
मिलते ना सहज ही मोती गेहरे पानी में..
बढता दूना विश्वास इसी हैरानी में..
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती..
हिम्मत करने वालों की कभी हार नही होती..
असफ़लता एक चुनौती है.. स्वीकार करो..
क्या कमी रेह गयी देखो और सुधार करो..
जब तक ना सफ़ल हो नींद-चैन को त्यागो तुम..
संघर्षोंका मैदान छोड मत भागो तुम..
कुछ किये बिना ही जयजयकार नहीं होती..
हिम्मत करने वालों की कभी हार नही होती..

karmveer

कर्मवीर

देख कर बाधा विविध, बहु विघ्न घबराते नहीं
रह भरोसे भाग के दुख भोग पछताते नहीं
काम कितना ही कठिन हो किन्तु उबताते नहीं
भीड़ में चंचल बने जो वीर दिखलाते नहीं
हो गये एक आन में उनके बुरे दिन भी भले
सब जगह सब काल में वे ही मिले फूले फले ।

आज करना है जिसे करते उसे हैं आज ही
सोचते कहते हैं जो कुछ कर दिखाते हैं वही
मानते जो भी हैं सुनते हैं सदा सबकी कही
जो मदद करते हैं अपनी इस जगत में आप ही
भूल कर वे दूसरों का मुँह कभी तकते नहीं
कौन ऐसा काम है वे कर जिसे सकते नहीं ।

जो कभी अपने समय को यों बिताते हैं नहीं
काम करने की जगह बातें बनाते हैं नहीं
आज कल करते हुये जो दिन गंवाते हैं नहीं
यत्न करने से कभी जो जी चुराते हैं नहीं
बात है वह कौन जो होती नहीं उनके लिये
वे नमूना आप बन जाते हैं औरों के लिये ।

व्योम को छूते हुये दुर्गम पहाड़ों के शिखर
वे घने जंगल जहां रहता है तम आठों पहर
गर्जते जल-राशि की उठती हुयी ऊँची लहर
आग की भयदायिनी फैली दिशाओं में लपट
ये कंपा सकती कभी जिसके कलेजे को नहीं
भूलकर भी वह नहीं नाकाम रहता है कहीं ।

Sunday, February 14, 2010

pune blast aur humari sarkar

Kya kar hai humari sarkar ,kya kar raha hai itne saare kufiya tantra.yeh jante hue bhi ki koi bada blast hone wala hai ye sarkar asfal rahi use rokne mein.
Ise hum apni nakami kahen ki humne hi humari sarkar chuni jo sirf har blast ke baad keval aarop lagati hai ki isme iska haat tha ,uska haath tha aur phir se koi blast ho jata hai. Jhelta kaun hai sarkar ya janta ye sochne ki baat hai, ye bichar karne ki baat hai. Lekin sochkar bhi kiya hi kya ja sakta hai. Hum to nirih janata hain sirf vote daal sakte hain isse jyada na hum kar sakte hain na hi hum sochte hain.
Har aisi ghatna ke baad hum office mein,ghar mein,train mein buson mein ek dusre se sikayaat karenge sarkar ki aur wo bhi do chaar din. uske baaad chup ho jayenge aur aage phir se kuch aisi ghatnayein hoongi.
prasan uthta hain hum kya karein apne saath saath apne mitron, ristedaron,padosiyon ko aise accidents se bachane ke liye.Is sandarbh mein mera mat hai ki sarkar ya system ki sikayat karne ke saath hi saath hum ek dusre se sujhav lein aur aise kai sujhaon ko aapas mein ek dusre se discuss karein to ho sakta hai ki humari jagrookta aur samadhan nikalne ki kosis is tarah ke kai durghtnaon ko na keval rokne mein sacham ho balki ek din hum apne dees se ise khatam karne mein kamyaab ho jayein.

Saturday, February 13, 2010

Vacancy

VACANCY
NADI MEIN DUBTE HUE AADMI NE AAWAZ LAGAI ,BACHAO- BACHAO,
PUL PER CHALTE HUE AADMI NE RASSI GIRAI AUR KAHA ,AAO –AAO,
DUBTA HUA AADMI RASSI NAHI PAKAD PA RAHA THA ,
AUR RAH RAH KAR YAHI CHILLA RAHA THA,
AREE KOI TO MUJHE BACHAO, KOI TO MUJHE BACHAO,
KYONKI ABHI ABHI MERI NAUKRI LAGI HAI,
KYONKI ABHI ABHI NAUKRI LAGI HAI , YE SUNKAR ,
YE SUNKAR, US PUL PER CHALTE HUE AADMI NE,
RASSI UPER KHEECH LEE,AUR DAUDKAR
AUR DAUDKAR , US COMPANEY KE MANAGER KE PASS GAYA,
AUR BOLA HUJOOR MEIN BEROJGAR HOON,
NAUKRI KE LIYE TAIYAAR HOON,ABHI ABHI,
ABHI ABHI ,AAPKA EK AADMI NADI MEIN DOOBKAR MAR GAYA ,
AUR IS TARH EK JAGAH KHALI KAR GAYA,
KRIPYA MUJHE US ASTHAN PER LAGA DIJIYE,
HOZOOR BOLE BETA TUMNE TO AANE MEIN DERI KAR DI KYONKI,
KYONKI MAINE ABHI ABHI,KYONKI MAINE ABI ABHI US JAGHA PER,
US VAYAKTI KO LAGAYA HAI,
JO US AADMI KO NADI MEIN DHAKAA DEKAR AAYA HAI.

THANK YOU